समर्पण
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.jpg) # समर्पण के सर्वोत्कृष्ट आदर्श पिता -श्री और मातेश्वरी जी* समर्पण के सर्वोत्कृष्ट आदर्श थे। निराकार परमात्मा शिव के एक संकेत पर रंचमात्र भी हिचकिचाहट दिखाए बिना पिता -श्री ने अपना सर्वस्व ईश्वरीय सेवा में समर्पण कर दिया। 35 वर्षों की लम्बी अवधि में उन्हें स्वंय में भी संशय न उठा, कठिन से कठिन परिस्थियों में उन्होंने कभी 'क्या' , 'क्यों' , और 'कैसे' का प्रश्न नहीं उठाया। इतना संपूर्ण था उनका तन -मन -धन का समर्पण ! उन्होंने यश , मान , कामना का तो क्या , अपनी बुद्धि का भी समर्पण कर दिया था। तभी तो उनका निराकार परमात्मा से पूर्ण तादात्य स्थापित हो गया था। उस सर्वशक्तिवान की शक्ति से वे भी शक्ति संपन्न बन गए थे , उस प्रेम सागर की तरंगों से तरंगित होकर वे भी प्रेम स्वरुप बन गए थे तथा उस आनंद के सागर की लहरों में सदा आनंदित रह कर वे लहराते रहते थे। श्री मातेश्वरी जी का निराकार परमात्मा शिव तथा उनके साकार रूप पिता -श्री के कठिन से कठिन आदेशों पर भी उन्होंने कभी नहीं सोचा कि यह कैसे होगा और सदा 'जी बाबा' कहा। तभी तो ये दोनों आज दैवी जगत के देदीप्यमान नक्षत्र बन गए जिनके दिव्य प्रकाश में पथ -भ्रष्ट जीवात्माएं सच्चे पथ का पथिक बन जाती है और संशय -ग्रस्त जीवात्माएं अपने संशय का निवारण पाकर लक्ष्य तक पहुँच जाती हैं। # *पिताश्री - परमात्मा शिव के साकार माध्यम जिन्होंने ईश्वरीय कायार्थ सर्वस्व का त्याग कर दिया था। उनको परमात्मा के द्वारा ही 'ब्रह्मा' कहा गया है। # * मातेश्वरी - ब्रह्मा द्वारा प्रसारित एवं प्रचारित ईश्वरीय दिव्या ज्ञान को जीवन में सबसे अधिक धारण करने वाली ब्रह्माकुमारी सरस्वती थीं , जिन्होंने भी अपना जीवन इस रूद्र ज्ञान -यज्ञ में 'स्वाहा' किया था। धन्यवाद @himanshurajoria